वनीय क्षेत्र होने के कारण चित्रकूट में लकड़ी प्रचुर मात्रा में पायी जाती है । बहुत बड़ी संख्या में इस जनपद के कारीगर लकड़ी के खिलौने बनाने में संलिप्त हैं । इस जनपद में निर्मित लकड़ी के खिलौने प्रदेश के अन्य भागों में मेले और प्रदर्शनियों में विक्रय हेतु भेजे जाते हैं ।
चित्रकूट जनपद का गठन बांदा जनपद के कुछ भाग को काट कर 6 मई 1997 को किया गया था । पहले यह नगर छत्रपति शाहूजी नगर के नाम से जाना जाता था । बाद में 4 सितंबर 1998 को इस जनपद का नाम बदलकर चित्रकूट रखा गया । चित्रकूट अत्यधिक पौराणिक व धार्मिक महत्ता का स्थल है ।
चित्रकूट जनपद की काष्ठकला का देश भर में अपना अलग स्थान है | पारंपरिक शैली को आधुनिकता के रंग में सजाकर यहाँ के शिल्पकारों ने इस कला को नए आयाम दिये हैं | फर्नीचर से लेकर दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुओं का लकड़ी से निर्माण यहाँ किया जाता है | लकड़ी पर नक्काशी का एक नया रूप आपको यहाँ देखने को मिलेगा | न केवल खिलौने बल्कि गृह निर्माण में प्रयोग की जाने वाली सामग्री यथा दरवाजों व खिड़कियों की चौखट-बाजुएँ यहाँ से अन्य नगरों में भी जाती हैं | वर्तमान में इस उद्योग में आधुनिक प्रौद्योगिकी का छोटे पैमाने पर प्रयोग होता है क्योंकि यह उद्योग यहाँ पर पारम्परिक रूप से चला आ रहा है और कुटीर उद्योग के रूप में फैला है |
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