"एक जनपद-एक उत्पाद" कार्यक्रम, उत्तर प्रदेश
भारत के हृदय स्थल में 2,40,928 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ उत्तर प्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का चौथा बड़ा राज्य है जो देश के कुल क्षेत्रफल के 7.3% भूभाग पर स्थित है । वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में 19.98 करोड़ जनसंख्या निवास करती है जो देश की कुल आबादी का 16.5% है । अर्थव्यवस्था के आकार के अनुसार, राज्य का देश में तीसरा स्थान है जिसका 2015-16 में सकल घरेलू उत्पाद 11,45,234 करोड़ रुपयों का था जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का 8.4% है ।
एम.एस.एम.ई. (सूक्ष्म , लघु , मध्यम उद्योग) क्षेत्र राज्य की अर्थव्यवस्था में विशेष भूमिका अदा करता है तथा पूंजी निवेश, उत्पादन एवं रोजगार में सार्थक योगदान देता है । लगभग 46 लाख, 8% एम.एस.एम.ई. इकाइयों के साथ उत्तर प्रदेश देश में प्रथम स्थान पर है । यह क्षेत्र, न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि संपूर्ण देश में, कृषि क्षेत्र के बाद दूसरा सबसे बड़ा रोजगार प्रदान करने वाला क्षेत्र है । उत्तर प्रदेश हस्तशिल्प के निर्यात, प्रसंस्कृत खाद्य, इंजीनियरिंग सामान, कालीन, रेडीमेड गारमेंट्स एवं चमड़ा उत्पादों के क्षेत्र में देश में एक अग्रणी प्रदेश रहा है ।
उत्तर प्रदेश से किए जाने वाले हस्तशिल्प उत्पादों का निर्यात देश के कुल हस्तशिल्प निर्यात का 44% है । इसी प्रकार कालीनों के 39% व चमड़ा उत्पादों के 26% कुल निर्यात के साथ यह योगदान और भी सार्थक सिद्ध होता है । उत्तर प्रदेश देश के कुल निर्यात का 4.73% भाग वहन करता है । प्रदेश के अधिकतर जनपद एक अथवा एक से अधिक विशिष्ट उत्पाद तैयार करते हैं । ये चाहे हस्तशिल्प हों, हैंडलूम हों, या कृषि/बागवानी उत्पाद हों, या राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट पहचान के साथ कोई लघु उद्यम हों| उदाहरणार्थ बनारस की सिल्क साड़ियाँ, मुरादाबाद के पीतल के बने हस्तशिल्प, पीलीभीत की बाँसुरी, बांदा की शज़र पत्थरों की बनी कलाकृतियाँ और सिद्धार्थनगर का काला नमक चावल आदि किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं । इन क्षेत्रों में कार्यरत शिल्पकारों/श्रमिकों के आजीविका स्तरों में सुधार और इन उत्पादों के प्रोत्साहन व विस्तार की अपार संभावनाएँ मौजूद है तथा इन उत्पादों के कुशल विपणन द्वारा इस क्षेत्र में रोजगार सृजन के नए आयाम जोड़े जा सकते हैं ।
इन बातों को दृष्टिगत रखते हुए, यह निर्णय लिया गया है कि प्रदेश में “एक जनपद-एक उत्पाद” कार्यक्रम को लागू किया जाय । इस कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्य निमन्वत हैं :-
- स्थानीय शिल्प का संरक्षण एवं विकास/कला और क्षमता का विस्तार,
- आय में वृद्धि एवं स्थानीय रोजगार का सृजन (रोजगार हेतु पलायन में भी कमी होगी),
- उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार एवं दक्षता का विकास,
- उत्पादों की गुणवत्ता में बदलाव (पैकिंग व ब्रांडिंग द्वारा),
- उत्पादों को पर्यटन से जोड़ा जाना (लाइव डेमो तथा काउंटर सेल – उपहार एवं स्मृतिकाओं द्वारा),
- क्षेत्रीय असंतुलन द्वारा उत्पन्न होने वाली आर्थिक विसंगतियों को दूर करना,
- राज्य स्तर पर ओ.डी.ओ.पी. के सफल संचालनोपरांत इसे राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाना,
यदि किसी जनपद में एक से अधिक उत्पाद विशिष्ट श्रेणी में आते हों और रोजगार उत्पन्न करने की क्षमता रखते हों तो एसे उत्पादों की संभावनाओं की पहचान करना । इन उत्पादों को भी कार्यक्रम की परिधि में रखना
कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिए, प्रत्येक जनपद के उत्पादों हेतु निम्नलिखित कार्यवाहियाँ की जानी हैं :-
- प्रसार, हितधारक, कुल उत्पादन, निर्यात, कच्चे माल की उपलब्ध्ता एवं प्रशिक्षण की व्यवस्था आदि पर एक वृहद डेटाबेस तैयार करना,
- उत्पादन, विकास व उत्पाद के विपणन की संभावनाओं पर शोध करना ,
- उत्पाद के विकास पर एक सूक्ष्म योजना तैयार करना, मार्केटिंग विस्तार और संबंधित शिल्पकार व श्रमिकों को रोजगार व आय वृद्धि हेतु अतिरिक्त अवसर प्रदान करना ,
- उत्पादों के प्रचार, प्रसार हेतु जनपद, राज्य, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवस्था करना ,
- नई व मौजूद इकाइयों को आर्थिक सहायता जारी रखने के लिए भारत सरकार द्वारा संचालित मुद्रा, पी.एम.ई.जी.पी., स्टैंड अप योजनाओं तथा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना तथा विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना से आवश्यक समन्वय स्थापित करना एवं आवश्यकता नुसार नई योजनाओं को प्रारंभ करना ,
- सहकारी एवं स्वयं सहायता समूहों का गठन करना ,
- शिल्प एवं तकनीकी विभाग द्वारा सामान्य व तकनीकी प्रशिक्षण उपलब्ध करवाना ।