इस जनपद में लकड़ी से संबंधित कार्य के लिए काफ़ी कच्चा माल है । काष्ठ शिल्प लकड़ी को विभिन्न आकृतियों में काट कर की जाती है या मूर्तिकला हेतु लकड़ी को विशेष रूप से तराशा जाता है । यहाँ पर बनाई जाने वाली लकड़ी की वस्तुओं में मुख्य रूप से दरवाज़े, कुर्सियां, बेड तथा कलात्मक चीज़ें जैसे खिलौने और कलाकृतियाँ हैं । इस कार्य में प्रयुक्त होने वाला कच्चा माल स्थानीय स्तर पर सरलता से उपलब्ध है । इन उत्पादों का स्थानीय बाज़ार आस पास के नगरों यथा लखनऊ , कानपुर और इलाहाबाद तक फैला है ।
रायबरेली जनपद का गठन 1858 में अंग्रेज़ी सरकार ने किया था । मान्यता है कि इसकी स्थापना “भर” वंश ने की थी तथा ये “भरौली” अथवा “बरौली” के नाम से जाना जाता था जो कि कालांतर में बरेली हो गया । उप्सर्ग “राय” के बारे में कहा जाता है कि ये “राही” का अपभ्रंश है , जो कि एक ग्राम है और यहाँ से 5 किमी दूर स्थित है । ये भी मान्यता है कि उप्सर्ग राय, यहाँ पर बसे कायस्थ जातियों के समूह को लक्षित करता है जो नगर पर काफी समय तक शासनरत रहे । भौगोलिक कालक्रमानुसार यह जनपद जनपद गंगा के मैदान में स्थित है जिसकी पुष्टि यहाँ की मिट्टी द्वारा भी होती है । यहाँ पाये जाने वाले खनिजों में रेह और काली मिट्टी प्रमुख है । यहा पर लगभग 90 ईंट भठ्ठे हैं जो ईंट उत्पादन में संलिप्त हैं । रायबरेली जनपद में औद्योगिक कार्यों हेतु कोई खनिज उपलब्ध नहीं है ।
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